उत्तराखंड

अधिकारी/कर्मचारी संयुक्त समन्वय समिति ने मुख्य सचिव और सचिव शैलेश बगौली से शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत कराए जा रहे पेयजल / सीवरेज के कार्यों की जांच की मांग की

विषय-:शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत कराए जा रहे पेयजल / सीवरेज  के कार्यों की जांच कराने के सम्बन्ध में ।

सादर संज्ञान में लाना है कि शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत पेयजल / सीवरेज कार्य USDDA के माध्यम से संचालित कराए जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में अवगत कराना है कि उक्त संस्था में कराए जा रहे कार्यों के निरीक्षण / पर्यवेक्षण हेतु सक्षम व आवश्यक तकनीकी अनुभव युक्त अभियन्ता तैनात नहीं हैं, अपितु अन्य विभाग से प्रतिनियुक्ति पर लाए गए अभियन्ता उक्त संस्था में कार्य कर रहे हैं। उक्त संस्था के अन्तर्गत कार्यरत अधिकांश अभियन्ता उनके द्वारा धारित पद के अनुरूप आवश्यक न्यूनतम तकनीकी अर्हता एवं सीवरेज / पेयजल का अनुभव नहीं रखते हैं। परिणामतः उक्त संस्था द्वारा कराए जा रहे कार्यों की गुणवत्ता स्तरीय नहीं पायी गयी, जिस कारण निर्माण कार्यों में लापरवाही व तकनीकी अज्ञानता के कारण जहां शासकीय धन की बर्बादी हो रही है वहीं अनियोजित एवं त्रुटिपूर्ण हानि निर्माण कार्यों के कारण आम जनता को हो रही असुविधा के कारण सरकार की छवि भी धूमिल हो रही है। इस सम्बन्ध में निम्न प्रकरणों में उच्च स्तरीय जांच करायी जानी अतिआवश्यक है :-

1. ए0डी0बी0 वित्त पोषित पेयजल / सीवरेज पेयजल योजना फेज-1 में लगभग 1000 करोड से अधिक के कार्य शहरी विकास विभाग द्वारा कराए गये उक्त कार्य विशेषज्ञ रेखीय विभागों से न कराते हुए ए0डी0बी के शहरी विभाग के अन्तर्गत ही पी०आई०यू० का गठन कराकर कराए गये। उक्त कार्य में से 70 प्रतिशत से अधिक कार्य अपूर्ण रह गए तथा पेयजल एवं सीवरेज योजनायें सुचारू रूप से संचालित नहीं हुई तथा उक्त योजनाएं अनुरक्षण संस्था (उत्तराखण्ड जल संस्थान) को शहरी विकास विभाग के उच्च अधिकारियों द्वारा दबाव देते हुए हस्तान्तरित करा दी गई । उक्त कार्यों में से अधिकांश कार्य अपूर्ण एवं निष्प्रयोज्य पडे हुए हैं। शहरी विकास विभाग द्वारा ए०डी०बी० संस्था से लिए गए लोन को अपना निजी धन समझते हुए निष्प्रयोज्य व्यय किया गया जबकि उक्त लोन की प्रतिपूर्ति राज्य सरकार द्वारा बाद में की जानी है। इस प्रकार शहरी विकास विभाग द्वारा कराए गए अनियोजित कार्य के कारण राज्य सरकार पर अनावश्यक 1000 करोड का कर्ज भारित हो गया है।

2. उपरोक्त फेज-1 के कार्यों में से जो पेयजल / सीवेज हेतु स्वीकृत थे, को व्यावर्तित करते हुए जाखन, राजपुर रोड पर सौन्दर्यीकरण का कार्य कराया गया, जिसमें धरातल पर किए गए कार्य योजना पर भारित किए गए कार्य का 50 प्रतिशत भी नहीं है। उक्त प्रकरण इसलिए भी अतिमहत्वपूर्ण है कि भविष्य में उक्त सडक का चौडीकरण होने पर उक्त समस्त कार्य निष्प्रयोज्य हो जाएंगे। इसमें यह भी विचारणीय है कि पेयजल / सीवेज कार्यों हेतु स्वीकृत लोन के सापेक्ष सौन्दर्यीकरण कार्य क्यों कराए गए? क्या सम्बन्धित अधिकारियों का एकमात्र मकसद लिए गए लोन को खपाना था? इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराना अति आवश्यक है।

3. यह भी विचारणीय है कि ए०डी०बी० द्वारा जल विद्युत निगम एवं अन्य विभागों के ऐसे अभियन्ताओं से पेयजल एवं सीवेज के कार्य सम्पादित कराए जा रहे हैं जिन्हें पूर्व में पेयजल एवं सीवेज के कार्यों का कोई अनुभव नही है। उनके द्वारा पूर्व में सम्पादित कार्यों में गम्भीर अनियमितता होने के बावजूद उनसे निरन्तर कार्य सम्पादित कराया जाना स्वतः ही प्रश्नचिन्ह उत्पन्न करता है। आउटसोर्स / प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत अधिकारियों की कार्य-प्रणाली के कारण शहरी विकास विभाग द्वारा संचालित स्मार्ट सिटी परियोजना के अन्तर्गत सड़क, पेयजल एवं सीवरेज के कार्यों की अत्यन्त दुर्दशा हुई है। जिसकी पुष्टि स्वतः ही इस बात से हो जाती है कि अन्ततः उक्त कार्य रेखीय विभागों, लोक निर्माण विभाग एवं उत्तराखण्ड पेयजल निगम को हस्तान्तरित करने पडे । इसके बावजूद इनके द्वारा कृत त्रुटिपूर्ण टेण्डर तथा कार्य आवंटन की कोई जांच वर्तमान तक नहीं की गई है। अतः इनकी उच्च स्तरीय जांच कराते हुए विभागीय अधिकारियों का उत्तरदायित्व शीघ्र निर्धारित किया जाए।

4. शहरी विकास विभाग द्वारा भ्रष्टाचार एवं व्यक्तिवाद को बढावा दिए जाने की आशंका इससे बलवती होती है कि राज्य की स्थापित नीतियों को अतिकमित करते हुए प्रतिनियुक्ति की अवधि 5 वर्ष से बढाकर 10 वर्ष कर दी गई। सुलभ संदर्भ हेतु शासनादेश सं0 95524 / 2023 दिनांक 01.02.2023 की प्रति संलग्न है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर तैनात अभियन्ताओं के द्वारा की गयी अनियमितताओं पर पर्दा डाले रहने हेतु ही प्रतिनियुक्ति अवधि 10 वर्ष करवा दी गई। पूर्व में प्रतिनियुक्ति अवधि 5 वर्ष रखने का ध्येय यह था कि सरकारी कार्य में पारदर्शिता हो तथा प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कार्मिक यथावश्यक कार्य उपरान्त अपने मूल विभाग वापस लौट जाएं परन्तु कार्मिक विभाग के उपरोक्त शासनादेश के माध्यम से शहरी विकास विभाग में प्रतिनियुक्ति कार्यरत कार्मिकों को लाभ देने के उद्देश्य से प्रतिनियुक्ति अवधि विस्तारित की गई है।

5. शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत कार्य में निविदाओं के आवंटन में भारी अनियमितता होने के कारण व टेण्डर प्रक्रिया पारदर्शी न होने के कारण अधिकारी निर्णय के विवेक के आधार पर निविदाओं को तकनीकी रूप से अर्ह / अनर्ह घोषित किया जाता है। उक्त प्रकरण की निष्पक्ष जांच करायी जानी अत्यन्त आवश्यक है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में उत्तराखंड पेयजल निगम तथा उत्तराखंड जल संस्थान द्वारा कराए जा रहे पेयजल / सीवेज कार्यों की निविदाओं में प्राप्त हो रही दरों से काफी अधिक दरों पर शहरी विकास विभाग द्वारा कार्य कराए जा रहे हैं। एक ही राज्य में दो अलग-अलग विभागों द्वारा अलग-अलग दरों पर कार्य कराया जाना जांच का विषय है।

6. शहरी विकास विभाग द्वारा उत्तरप्रदेश पेयजल / सीवरेज अधिनियम 1975 का उल्लंघन करते हुए राज्य में पेयजल की कार्यदायी संस्था उत्तराखण्ड पेयजल निगम एवं अनुरक्षण संस्था, उत्तराखण्ड जल संस्थान का गठन होने के बाद भी समान्तर में एक कार्पोरेशन गठन का प्रयास किया जा रहा है। उक्त कार्पोरेशन गठन का एकमात्र उद्देश्य शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत संचालित पेयजल सीवेज कार्यों के अनियमितताओं पर पर्दा डालना है।

अतः आपसे अनुरोध है कि कृपया शहरी विकास विभाग द्वारा वर्तमान तक कराए गए समस्त कार्यों की निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच कराने की कृपा करेंगे।

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