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राज्य का वित्तीय बोझ कम करने को पहले IAS, IPS, IFS और वित्त सेवा अधिकारी त्यागें ऐशो-आराम–सचिवालय संघ

देहरादून।सचिवालय सेवा संवर्ग सहित अन्य विभागों में कैबिनेट द्वारा वेतनमान डाउनग्रेड करने को लेकर लिए निर्णय का सचिवालय संघ पुरजोर विरोध कर रहा है। इस संबंध में सचिवालय संघ ने शनिवार को अपने वेतनमान डाउनग्रेड को लेकर अन्य सेवाओं को मिल रही सुख सुविधाओं व अत्यधिक वेतन व भत्तों के लाभ का विस्तृत चित्रण करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सभी आधार व तथ्यों के साथ अपना मांग पत्र दिया है।

संघ ने अपने मांग पत्र के माध्यम से वर्तमान समय में कुछ आलाधिकारियों द्वारा सचिवालय एवं कार्मिकों के प्रति दोहरी और नकारात्मक मानसिकता भरा दृष्टिकोण रखने का आरोप लगाया है। संघ ने कहा है कि राज्य की आर्थिक स्थिति का हवाला देकर मात्र कार्मिकों के वेतन व पेंशन को ही राज्य की आय का मुख्य स्त्रोत समझते हुए वेतन/पेंशन की दर घटाने की सोच के हाल ही में सचिवालय सहित कुछ विभागों के कार्मिकों के वेतनमान डाउनग्रेड का निर्णय गुप-चुप तरीके से कैबिनेट से पास करा लिया गया है।

संघ ने कहा है कि अब मजबूरन इस फैसले के विरूद्ध सचिवालय सेवा संवर्ग की भावनाओं के अनुरूप सचिवालय संघ लामबन्द होने के साथ-साथ आन्दोलन हेतु प्रतीक्षारत भी है तथा सभी कार्मिकों में इसे लेकर अत्यन्त रोष व्याप्त है।

संघ ने अपने मांग पत्र में मुख्यमंत्री से कहा है कि एकाएक वेतनमान डाउनग्रेड करने के निर्णय की संवेदनशीलता व गम्भीरता को आप बेहतर समझते भी हैं और कुछ आला अधिकारियों द्वारा यह कहकर कि यह व्यवस्था तो मात्र नये कार्मिकों पर लागू होगी, राज्य में एक नई बहस व असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

जबकि असल मायने में यह सिर्फ कार्मिक सेवा संघों को बहलाने का एक मात्र जुमला है। वास्तविक रूप में धरातल पर यह सम्भव नहीं हो सकता कि एक ही विभाग में एक पदनाम के 02 पृथक-पृथक वेतनमान स्थापित हों। इससे भविष्य में विकराल वेतन विसंगति होगी तथा अनावश्यक वाद विवाद/विधिक अड़चनें उत्पन्न होंगी।

जहाँ एक ओर यह जुमला स्थापित करते हुये मात्र इस प्रदेश के कार्मिकों पर ही लागू कराये जाने की योजना को अन्तिम रूप दिये जाने की चेष्टा आला अधिकारियों द्वारा की जा रही है। वहीं दूसरी ओर बड़े सेवा संवर्गो के लिये ऐसी कोई कार्यवाही अमल में नहीं लायी गयी है, जिनके अत्यधिक वेतनमान, सुविधायें एंव विभागीय ढांचे में आवश्यकता से अधिक पदों से इस राज्य के राजस्व/आर्थिकी में कुप्रभाव पड़ता है़।

इस वजह से सरकार की दोहरी नीति परिलक्षित होती है तथा एक कार्मिक वर्ग में असुरक्षा का माहौल उत्पन्न होता है, जबकि सरकार सभी के लिये बराबर है। सरकार की नीति/नियम, मापदण्ड सबके लिये एक समान होते हैं और होने भी चाहिये।

संघ ने अपने मांग पत्र में कहा है कि सरकार का ध्यान इस ओर प्रमुखता से आकृष्ट करना चाहेंगे कि छोटे व सीमित वित्तीय संसाधनयुक्त उत्तराखण्ड राज्य (जैसा आला अधिकारियों द्वारा इस राज्य को परिभाषित किया गया है) के स्थापित नियम ही राज्य में कार्यरत सभी लोक सेवकों पर लागू होने चाहिये, किसी भी सेवा संवर्ग के लिये राज्य से इतर व्यवस्थायें/नियम स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। सचिवालय के कार्मिकों के साथ आला अधिकारियों द्वारा खेले जा रहे दोहरे चरित्र में आला अधिकारियों एवं कुछ विशिष्ट सेवाओं के अधिकारियों की मंशा है कि सचिवालय सेवा की गरिमा को कम का दिया जाए। ये आलाधिकारी चाहते हैं कि सचिवालय में उन्हीं का वर्चस्व बना रहे तथा सचिवालय सेवा के पद सोपान अनु सचिव/उप सचिव तक सीमित करा दिये जायें।

इसीलिए केन्द्र सरकार का ऐसा चार्ट बनाकर कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया है, जिससे सचिवालय सेवा संवर्ग को डाउनग्रेड किया जाना आसान हो सके। इसका सचिवालय संघ पुरजोर विरोध करता है तथा ऐसे तथाकथित अधिकारियों की घोर निन्दा करता है। आला अधिकारियों की ऐसी दूषित मंशा किसी भी दशा में स्वीकार नहीं की जायेगी, चाहे इसके लिये कितना ही बड़ा आन्दोलन क्यों न करना पड़े।

संघ ने कहा है कि मुख्यमंत्री धामी प्रकरण की सम्पूर्ण वस्तुस्थिति से भिज्ञ होंगे, परन्तु कतिपय आला अधिकारियों द्वारा तथ्यों को छुपाकर कदाचित यह प्रस्ताव कैबिनेट को गुमराह कर पारित कराया है। इसमें मात्र कार्मिकों के असंतोष के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होना है। यह सत्य है कि जबरन कराये जा रहे वेतनमान डाउनग्रेड का निर्णय कभी भी धरातल पर ऐसी दशा में प्रभावी नहीं हो सकता है तथा यह हमेशा विवादों/विधिक अड़चनों में ही लटका रहेगा। सिर्फ सरकार की किरकिरी के अलावा इसमें आला अधिकारियों से सरकार को कोई अन्य लाभ नहीं मिलने वाला है।

वर्तमान समय में जो रोना आला अधिकारियों द्वारा राज्य के विकास के निमित्त रोया जा रहा है तथा दुहाई दी जा रही है कि वे राज्य के सच्चे हितैषी है तथा इससे राजस्व घाटे में अंकुश लगेगा। सरकार को राहत मिलेगी, तो ऐसे तथाकथित राज्य के आला अधिकारियों को स्वयं की सेवा में से वेतन इत्यादि को कम करने का त्याग दिखाकर अपने ऐशो-आराम के अनावश्यक खर्चों को छोड़कर एक मिसाल पेश करने कापुनीतकार्य प्रारम्भ करना चाहिए।

सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा है कि अखिल भारतीय सेवा (आई0ए0एस0, आई0पी0एस0, आई0एफ0एस0), उत्तराखण्ड सिविल सेवा (कार्यकारी षाखा), वित्त सेवा आदि को भी स्पष्ट रूप से राज्य हित में इस त्याग में सम्मिलित कराकर उनको राज्य में विशेष सेवा दिलाकर मिल रहे अनावश्यक लाभों एवं सरकार के बड़े खर्चोें पर कैंची चलानी होगी। जोशी ने कहा कि सिर्फ सचिवालय सेवा संवर्ग ही क्योंबल्कि इस राज्य की आर्थिकी के लिहाज से स्वयं के ढांचे/पदों को कम करना होगा, अपने खर्चों को सीमित करना होगा तथा राज्य सरकार की नीति/व्यवस्थाओं के अन्तर्गत ही सेवा लाभ लेने होंगे।

सचिवालय संघ ने राज्य की आर्थिक कमजोरी के निमित्त मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुरोध किया है कि वेकुछ महत्वपूर्ण तथ्यों से ध्यान दें, जिस ओर शायद ही इन आला अधिकारियों ने कभी ध्यान दिलाना गंवारा किया हो –

1.राज्य में अखिल भारतीय सेवा, विशेषकर आई0ए0एस0 सेवा के मनचाहे निर्णय/लाभ/फायदेः

1.उत्तराखण्ड जैसे छोटे व सीमित संसाधन वाले राज्य में कार्यरत देश की सबसे बड़ी सेवाओं (आई0ए0एस0, आई0पी0एस0, आई0एफ0एस0) का विभागीय ढांचा प्रत्येक 05 वर्ष में स्वतः ही किये जाने की व्यवस्था पृथ्वीलोक के भगवान कहे जाने वाले उक्त सेवाओं के आला अधिकारियों द्वारा स्वयं की सेवा के लिये की गयी है। इसमें प्रत्येक 05 वर्ष पर बढ़ने वाले 05 प्रतिशत पदों से क्या उत्तराखण्ड राज्य की वित्तीय स्थिति सुदृढ होती है?
क्या इन पदों के बढ़ने से सरकार को वित्तीय बोझ नहीं उठाना पड़ता? इसका कोई प्रतिउत्तर यदि इन आला अधिकारियों द्वारा महोदय को संज्ञानित कराया गया हो तो सर्वप्रथम राज्य सरकार पर प्रत्येक 05 वर्ष में राज्य के हिसाब से पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को कम किया जाए तथा सर्वप्रथम प्रत्येक 05 वर्ष पर बढ़ने वाले पदों पर रोक लगायी जाय तथा सरकार के राजकोश को हानि न होने दी जाय।

2.भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई0ए0एस0) के पूर्व में स्वीकृत 120 पदों के ढांचे को बढ़ाकर 126 किया जाना क्या वित्तीय प्रबन्धन की मजबूती के लिये उत्तराखण्ड राज्य के हित में है? यदि नहीं है तो सर्वप्रथम भारतीय प्रशासनिक सेवा के ढांचे को राज्य की आर्थिक स्थिति को देखते हुये कम किया जाए तथा इस ढांचे को 80-90 पदों तक सीमित करते हुये राज्य के राजस्व खजाने में इजाफा किया जाए।

राज्य की आर्थिक स्थिति का गंभीरतापूर्वक चिन्तन करने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई0ए0एस0) के विभागीय ढांचे में स्वीकृत मुख्य सचिव एवं अपर मुख्य सचिव के 01-01 पद के सापेक्ष कुल 04 अधिकारी राज्य में कार्यरत हैं, जो मुख्य सचिव का वेतनमान धारित किये हुये हैं। इसी प्रकार भारतीय पुलिस सेवा में पुलिस महानिदेषक व अपर पुलिस महानिदेषक के क्रमश: स्वीकृत 01-02 पदों के सापेक्ष कुल 05 अधिकारी कार्यरत हैं जो पुलिस महानिदेशक का वेतनमान धारित किये हुये हैं।

भारतीय वन सेवा की स्थिति इससे भी ज्यादा दिलचस्प है, जहां ढांचे में स्वीकृत प्रमुख वन संरक्षक, प्रमुख वन संरक्षक के क्रमश: स्वीकृत 01-02 पदों के सापेक्ष कुल 05 अधिकारी कार्यरत हैं। जबकि अपर प्रमुख वन संरक्षक के कुल स्वीकृत 04 पदों के सापेक्ष 14 अधिकारी कार्यरत हैं तथा मुख्य वन संरक्षक के कुल स्वीकृत 14 पदों के सापेक्ष 15 अधिकारी कार्यरत हैं।

4.क्या इस छोटे राज्य के वित्तीय संसाधनों की स्थिति में किसी सेवा विशेष के लिये स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक अधिकारी रखे जा सकते हैं तथा क्या यह वित्तीय नियमों के विपरीत नहीं हैं?

5.क्या इस छोटे राज्य में मुख्य सचिव के वेतनमान में अतिरिक्त रूप से 03 अपर मुख्य सचिवों, पुलिस महानिदेशक के वेतनमान में अतिरिक्त रूप से 04 अपर पुलिस महानिदेशकों, प्रमुख वन संरक्षक के वेतनमान में अतिरिक्त रूप से 04 प्रमुख वन संरक्षकों की आवश्यकता है?

यदि नहीं तो सर्वप्रथम इन पदों को कम करते हुये इसे सीमित किया जाए तथा राज्य के कमजोर वित्तीय प्रबन्धन को सुदृढ किया जाए।

6.प्रदेश कार्मिकों के लिए सरकार की स्थापित व्यवस्था/नियमों के विपरीत शिथिलीकरण नियमावली के प्रभावी न होने के दौरान भी प्रदेश के 02 वरिष्ठ आई0ए0एस0 अधिकारियों द्वारा स्वयं के अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव पद पर पदोन्नति हेतु अर्हकारी सेवा अवधि में मनमाने तरीके से लिया गया शिथिलीकरण क्या राज्य के विकास व राजस्व प्राप्ति के हित में था?

7.आई0ए0एस0 संवर्ग में अपर सचिव के 10 पदों पर कार्यरत अधिकारियों को बिना किसी नियम व प्रावधानों के सीधे ग्रेड वेतन 8700 में चयन श्रेणी का वेतनमान अनुमन्य करते हुये सचिव (प्रभारी) पदनाम दिया जाना क्या राज्य हित व राजस्व प्राप्ति के हित में है?

8.क्या अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, प्रभारी सचिवों को प्रति अधिकारी घर पर 02 कैम्प सहायक तथा अपर सचिव हेतु 01 सहायक पी0आर0डी0 से मानदेय की अनुमन्यता के आधार पर रखा जाना राजस्व हित को बढ़ा रहा है तथा क्या यह राज्य हित में अति आवश्यक है?

9.प्रदेश कार्मिकों के लिये चिकित्सा प्रतिपूर्ति की व्यवस्था समाप्त करते हुए सरकार के संगत बजट शीर्षक को बन्द कर गोल्डन कार्ड का झुनझुना पकड़ाकर अखिल भारतीय सेवा द्वारा अपने लिये की गयी व्यवस्थाओं के अन्तर्गत प्रदेश के बाहर कराये गये उपचार हेतु रू0 2000 प्रतिदिन तथा प्रदेश के अन्दर रू0 1000 प्रतिदिन की दर स्वयं के लिये अनुमन्य की गयी है, क्या यह राजस्व वृद्धि के लिये उपयोगी है?

अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को प्रतिमाह Children Education Allowance की प्रतिपूर्ति हेतु अनुमन्य करायी गयी रू0 2250 प्रतिमाह की धनराशि से क्या राज्य पर कोई बोझ नहीं पड़ रहा है? इसी प्रकार अनुमन्य रू0 6750 प्रतिमाह की धनराशि, हॉस्टल सब्सिडी की प्रतिपूर्ति लेना क्या इस छोटे राज्य में जायज है?

11.राज्य के सीमित संसाधनों एवं राज्य की आर्थिक स्थिति में ‘एक अधिकारी-एक वाहन’ के सिद्वान्त को न अपनाकर देश की सर्वोच्च सेवा के ऐसे अधिकारियों द्वारा अपने सरकारी व निजी कार्यों हेतु एक ही सरकारी वाहन का उपयोग न कर 08-10 सरकारी वाहनों का प्रयोग करते हुये सरकारी ईंधन का दुरूपयोग किया जाना क्या राज्य के हित में है? क्या इसमें स्वयं से ऐसे अधिकारियों द्वारा सरकारी वाहनों का त्याग कर सरकार को एक मिसाल पेश नहीं की जा सकती है?

12.अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों द्वारा स्वयं के लिये करायी गयी स्थायी व्यवस्था के अन्तर्गत x, y (देहरादून) z श्रेणी के शहरों हेतु आवास किराया भत्ते की दर 24, 16 व 08 प्रतिषत के निर्धारण उपरान्त उक्त दर को महंगाई भत्ते की दर 25 प्रतिषत से अधिक होने पर क्रमश: 27, 18 व 09 प्रतिशत निर्धारित होने तथा महंगाई भत्ते की दर 50 प्रतिषत से अधिक होने पर आवास किराया भत्ता स्वतः ही 30, 20 व 10 प्रतिशत अनुमन्य हो जाता है। जबकि राज्य के कार्मिकों हेतु स्थापित व्यवस्था के अन्तर्गत देहरादून शहर हेतु 12 प्रतिशत मकान किराया भत्ता नियत है। ऐसी स्थिति में क्या राज्य के हित में अखिल भारतीय सेवाओं के लिये स्वयं को प्राप्त हो रहे अत्यधिक मकान किराया भत्ता को राज्य की वित्तीय स्थिति के हिसाब से सीमित नहीं किया जा सकता?

उक्त के सम्बन्ध में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों हेतु अनुमन्य मकान किराया भत्ते की दरों की अनुमन्यता के सम्बन्ध में वित्त अनुभाग-7 का शासनादेश दि0 11.06.2019 द्वारा राज्य में स्थापित नियमों से इतर उक्त सेवाओं के लिये मकान किराये भत्ते की अधिक दरों को अनुमन्य किये जाने की व्यवस्था बनायी गयी है। जबकि प्रदेश कार्मिकों के भत्तों इत्यादि हेतु निर्गत किये जाने वाले शासनादेश में सदैव कम दरों को प्राथमिकता दिए जाने का प्रावधान किया जाता है। क्या राज्य हित में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी बढ़ी हुई मकान किराया भत्ते की दर को त्याग कर राज्य में स्थापित व्यवस्था व दरों के अनुरूप मकान किराया भत्ता की दर को सीमित करने की मिसाल पेश करेंगे?
अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का वेतन प्रत्येक वर्ष की वार्षिक वेतन वृद्धि पर मकान किराया भत्ता व महंगाई भत्ते की वृद्धि के साथ निरन्तर बढ़ता रहता है। जबकि प्रदेश के कार्मिकों की वार्षिक वेतन वृद्धि पर यह वृद्धि प्राप्त नहीं होती तथा पूर्व से नियत मकान किराया भत्ता की राशि ही अनुमन्य होती है। ऐसी स्थिति में क्या राज्य हित में अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी प्रतिवर्ष वार्षिक वेतन वृद्धि के आधार पर बढ़ रहे अत्यधिक वेतन के भार को सीमित करने का साहस राज्य हित में कर पायेंगे?

संघ ने अपने मांग पत्र में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष ऐसे ही कुछ और तथ्य भी रखे

उत्तराखण्ड सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) को दिये जा रहे विशेष लाभः

1.राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों के उपरान्त भी राज्य की सिविल सेवा (कार्यकारी शाखा) को इस राज्य में विशेष सुविधायें एवं लाभ प्राप्त हैं, जिनको आधार बनाकर ऐसे ग्रेड वेतन 6600 व 7600 पर कार्यरत कनिष्ठ अधिकारियों को सचिवालय में सीधे अपर सचिव के पद पर तैनात किये जाने से सचिवालय की कार्यप्रणाली में कुप्रभाव पड़ रहा है। जबकि ऐसे अधिकांश अधिकारी जनपद स्तर पर एस0डी0एम0/ए0डी0एम0 रैंक पर कार्यरत होते हैं। क्या राज्य हित में ऐसे कनिष्ठ वेतनमान के पी0सी0एस0 अधिकारियों को सीधे अपर सचिव जैसा उच्चतर पद दिया जाना उचित है?

भारत सरकार व उत्तरप्रदेश सरकार से भिन्न बिना किसी ठोस आधार के पी0सी0एस0 काडर में अखिल भारतीय सेवा की भांति सिलेक्शन ग्रेड की व्यवस्था निर्धारित की गयी है। इस सिलेक्शन ग्रेड की व्यवस्था में साधारण वेतनमान में स्वीकृत पदों की संख्या के 50 प्रतिशत की सीमा तक के पदों को जयेष्ठ वेतनमान में चयन हेतु लिया गया है जो एक त्रुटिपूर्ण व काडर विशेष के लिये की गयी खास व्यवस्था है। जबकि प्रदेश के अन्य सेवा संवर्गों जैसे सचिवालय सेवा, जिनकी भर्ती भी लोक सेवा आयोग के माध्यम से सीधी भर्ती द्वारा होती है, में ऐसी कोई व्यवस्था लागू नहीं है।

3.पी0सी0एस0 काडर की सेवा नियमावली में जयेष्ठ श्रेणी वेतनमान से उच्चतर वेतनमान की 04 श्रेणियों में प्रत्येक श्रेणी के वेतनमान में पदोन्नति हेतु नियत सेवा अवधि को विशेष परिस्थितियों में शिथिल करने का परन्तुक जोड़ा गया है, जिस कारण राज्य में विशेष काडर के रूप में स्थापित पी0सी0एस0 काडर में इन सिलेक्शन ग्रेड्स की प्राप्ति समय से पहले हो जाने के फलस्वरूप अल्प सेवा अवधि में ही अन्य राज्यों से भिन्न व्यवस्था के अन्तर्गत 8-10 वर्ष की सेवा पर ही ऐसे पी0सी0एस0 काडर के अधिकारियों को आई0ए0एस0 सेवा संवर्ग प्राप्त हो जाना, क्या राज्य हित में है? क्या अन्य सेवाओं हेतु निर्धारित 05 प्रतिषत आई0ए0एस0 संवर्ग के कोटे पर पी0सी0एस0 काडर के अतिरिक्त अन्य अधिकारियों का चयन नहीं किया जा सकता?

4.राज्य सचिवालय में सभी सेवा संवर्गों (भारतीय प्रषासनिक सेवा-10 पद, सचिवालय सेवा-11) में अपर सचिव के पद चिन्हित हैं परन्तु वर्तमान समय तक मात्र पी0सी0एस0 काडर के अपर सचिव के पदों का निर्धारण न होने से सचिवालय में अत्यधिक पी0सी0एस0 अधिकारियों का जमावड़ा है। क्या सचिवालय में पी0सी0एस अधिकारियों को सीमित संख्या में तैनात करते हुये जनपद स्तर पर आम जनमानस के विकास कार्यों हेतु भेजा जाना उचित नहीं होगा?

संघ मांग पत्र में इन सेवाओं से जुड़े ये मुद्दे भी संघ द्वारा उठाए गए

वित्त सेवा को प्रदत्त सुविधायें/लाभः

1.प्रदेश की अर्थव्यवस्था में वित्त सेवा के अधिकारियों की स्थिति अत्यन्त सुदृढ होने के कारण वित्त सेवा संवर्ग के ऊपर आला अधिकारियों द्वारा विशेष कृपा की गयी है। वित्त सेवा संवर्ग के ढांचे में ग्रेड वेतन रू0 10,000 के अत्यधिक पद (06) सृजित किये गये हैं, जो कि सरकार के सचिव स्तर के पद हैं। क्या इतनी अधिक संख्या में किसी सेवा संवर्ग विशेष के लिये इतने पदों को सृजित रखना राजस्व प्राप्ति में सहायक हैं? जिस प्रकार सचिवालय सेवा में वैयक्तिक वेतनमान के रूप में पूर्व में चिन्हित ग्रेड वेतन रू0 10,000 के 02 पदों को समाप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार यदि अत्यधिक संख्या में सृजित इन पदों से कोई राजस्व प्राप्ति हो पाना सम्भव नहीं है तो तत्काल इन 06 पदों को भी वित्त सेवा संवर्ग के ढांचे से समाप्त किया जाय।

2.वित्त सेवा के विभागीय ढांचे में की गयी विशेष व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न विभागों में वित्त सेवा के संवर्गीय व प्रतिनियुक्ति के पद केवल साधारण वेतनमान रू0 15600-39100 में रू0 5400/- के ग्रेड वेतन पर सृजित होने तथा उन्हें स्वतः ही वित्त सेवा के ढांचे में अतिरिक्त रूप से सम्मिलित मान लिये जाने की व्यवस्था क्या राज्यहित में उपयोगी है? ऐसी व्यवस्था को रखे जाने से क्या राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी?

3.उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य के सचिवालय में वित्त सेवा से मात्र 01-02 वरिष्ठ अधिकारी ही वित्तीय परामर्श के लिये तैनात किये जाते थे। परन्तु उत्तराखण्ड जैसे छोटे राज्य के सचिवालय में वित्त सेवा के अधिकारियों की लम्बी फौज तैनात है। जोकि संवर्गीय ढांचे के भी विरूद्ध है तथा अन्य प्रशासकीय विभागों का चार्ज भी वित्त सेवा के अधिकारियों को दिया जाना उनके पदीय कर्तव्यों के विरूद्ध है। क्या सचिवालय में बहुसंख्यक मात्रा में तैनात वित्त सेवा के अधिकारियों को सचिवालय से बाहर विभिन्न विभागों में सरकार के राजस्व प्राप्ति का उत्तरदायी बनाकर तैनात किया जाना राज्य हित में नहीं होगा?

4.वित्त सेवा के अधिकारियों को उनके पदीय कर्तव्यों के सापेक्ष सचिवालय में मात्र वित्त विभाग में सीमित संख्या (01 अधिकारी) में ही केवल वित्तीय परामर्श के लिये तैनाती देते हुये प्रशासनिक निर्णय हेतु उनकी उपयोगिता निर्धारित न कर किसी भी अन्य प्रशासकीय विभाग का दायित्व ऐसे अधिकारियों को शासकीय कार्यहित में न दिया जाए।

संघ ने सीएम को सौंपे मांग पत्र में राजकीय धन के दुरुपयोग के कुछ अहम बिंदु ये भी रखे

राजकीय धन का दुरूपयोग के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुः

1.सरकारी कार्यालय कक्ष/आवास में सरकार द्वारा मितव्ययता बरते जाने के निर्देषों के उपरान्त भी आला अधिकारियों की स्वेच्छा चारिता से 50-50 लाख तक के अनुरक्षण कार्य सचिवालय के कई आला अधिकारियों द्वारा कराये गये हैं तथा वर्तमान में भी कराये जा रहे हैं।

प्रदेश के हित में सभी कल्याणकारी निर्णयों को लिये जाने हेतु कार्यपालिका में मंत्रिमण्डल अधिकृत है। परन्तु राज्य में सचिव समिति के नाम से की जाने वाली महत्वपूर्ण बैठकें क्या राज्यहित के लिये उपयोगी हैं? क्या मंत्रिमण्डल के बाद किसी कार्यप्रणाली में सचिव समिति द्वारा लिये जाने वाले निर्णय वैधानिक हैं? राज्य में क्या ऐसी कोई समिति के निर्णय लिये जाने का स्तर राज्य सरकार द्वारा अधिकृत है?

सचिवों के कार्यालय में होने वाली साज-सज्जा तथा आलीशान फर्नीचर इत्यादि साल दर साल दर बदला जाना क्या राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों के अनावश्यकखर्चों के परिप्रेक्ष्य में उचित है?

4.प्रत्येक आई0ए0एस0 अधिकारी द्वारा राज्य सम्पत्ति विभाग से आवंटित सरकारी वाहन के अतिरिक्त अन्य प्रभार के दायित्वों के अन्तर्गत 08-10 सरकारी वाहनों का निजी प्रयोग करते हुये सरकार्री इंधन का बहुतायात मात्रा में दुरूपयोग किये जाने से सरकारी धन की बरबादी राज्य के लिये क्या उचित है?

6.उपरोक्त वर्णित सुविधाओं तथा राज्य के वित्तीय संसाधनों से स्वयं के वेतन, भत्तों व ऐशो-आराम से लाभान्वित आला अधिकारियों द्वारा इस राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों की आर्थिकी का रोना मात्र प्रदेश के कार्मिकों व पेंशनर्स के वेतन व भत्तों पर कैंची चलाकर अपनी सुख सुविधाओं में कोई कमी न कर अपने लिये अतिरिक्त ढांचे का गठन करना, वेतन भत्तों की नियत बढ़ोतरी हेतु स्थायी व कारगर व्यवस्था अमल में लाया जाना तथा राज्य के विकास में अपनी सेवा में कटौती का त्याग छोड़कर मात्र कर्मचारियों के शोषण का जो खेल खेला जा रहा है। उसके विरूद्ध प्रदेश के समस्त कार्मिक वर्ग में असंतोष व आक्रोश उत्पन्न हुआ है तथा ऐसे अधिकारियों की कार्यप्रणाली के विरूद्ध सचिवालय संघ पुरजोर तरीके से लामबन्द होकर आन्दोलन का मार्ग तय करने हेतु दृढ संकल्पित है। किसी भी दषा में ऐसे आला अधिकारियों के तुगलकी फरमान मानने हेतु बाध्य नहीं है।

7.प्रकरण में सचिवालय सेवा संवर्ग के वेतनमानों की पैरिटी कभी भी केन्द्र सरकार से नहीं रही है। पुनर्गठन अधिनियम की धारा 74 व 86 में पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश में प्रदत्त समस्त लाभों का संरक्षण प्राप्त होने की व्यवस्था के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा सर्वप्रथम समीक्षा अधिकारी के वेतनमान उच्चीकरण के अनुरूप उत्तराखण्ड राज्य में भी वेतनमान उच्चीकृत किये गये। इसका भारत सरकार की समकक्षता से कोई सरोकार नहीं है।

इसके अतिरिक्त सचिवालय कार्यप्रणाली के अन्तर्गत वेतन विसंगति समिति, जो नियमानुसार मुख्य सचिव (पदेन) की अध्यक्षता में गठित रही है, की संस्तुतियों के क्रम में वित्त विभाग के अशासकीय पत्र दि0 19.07.2012 के सन्दर्भ में सचिवालय प्रशासन अनुभाग-1 के कार्यालय ज्ञाप दि0 25.07.2012 द्वारा सचिवालय के समीक्षा अधिकारी का ग्रेड वेतन 4800 व अनुभाग अधिकारी का ग्रेड वेतन रू0 5400 नियत किया गया है, जो वर्तमान समय तक देय है। केन्द्रीय सचिवालय के सहायक से ग्रेड वेतन की समकक्षता का फॉर्मूला तथ्यों से परे एवं सचिवालय सेवा को डाउनग्रेड किये जाने का एक कुचक्र मात्र है। इससे भविष्य में इस सेवा के पदोन्नति पद सोपान अनुसचिव/उपसचिव तक सीमित कर दिये जायें। जबकि भारत सरकार की समकक्षता यदि जबरन स्थापित करने की मंशा आला अधिकारियों की है, तो भारत सरकार की तर्ज पर अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को प्राप्त होने वाले भत्तों के समान राज्य सचिवालय के कार्मिकों को भी तदनुसार भत्ते अनुमन्य किया जाना अपरिहार्य होगा।

8.शासन में बैठे कतिपय आला अधिकारियों की दूषित व सचिवालय सेवा के प्रति नकारात्मक मानसिकता से कार्य सम्पादित किये जाने के उद्देष्य से हाल ही में आनन फानन में मंत्रिमण्डल से कराये गये सचिवालय सेवा संवर्ग के वेतनमान डाउनग्रेड के निर्णय का सचिवालय संघ पुरजोर विरोध करता है तथा ऐसे आला अधिकारियों की सरकार को गुमराह करने की कार्यप्रणाली की घोर भर्त्सना करता है।

प्रकरण में जिस प्रकार से वेतनमान डाउनग्रेड को लेकर तथ्य रखे जा रहे हैं कि यह व्यवस्था नये कार्मिकों पर लागू होगी, पूर्व से कार्यरत कार्मिक इससे प्रभावित नहीं होंगे। यह तथ्य धरातल पर कभी भी उपयोगी व सफल नहीं हो सकता है क्योंकि एक ही विभाग/कार्यालय में एक ही पदनाम के 02 पृथक-पृथक वेतनमान/ग्रेडवेतन देय व निर्धारित होना यथार्थ से कोसों दूर है। जिस दिन इस व्यवस्था को धरातल पर क्रियान्वित किये जाने का अवसर होगा, उस दिन एक ही पदनाम के दो अलग-अलग कार्मिकों द्वारा पृथक-पृथक वेतनमान लिये जाने पर वाद-विवाद, विसंगतियां व विधिक वाद दायर होंगे तथा सरकार को अनावश्यक उत्पन्न असहज स्थिति का सामना करना पड़ेगा।

अतः उपरोक्तानुसार वर्णित विस्तृत स्थिति/तथ्यों के दृष्टिगत राज्य के विकास की दुहाई देेने वाले शासन के आला अधिकारियों को मिल रही सुख सुविधाओं, वेतन भत्तों व ऐशो-आराम में राज्य के नीति नियमों के अनुरूप कटौती करते हुये राजस्व घाटे को उबारने हेतु कार्मिकों के वेतनमान डाउनग्रेड के स्थान पर प्रस्तर-5 में उल्लिखित राजस्व हित के महत्वपूर्ण सुझावों/तथ्यों पर प्राथमिकता के आधार पर सर्वप्रथम आला अधिकारियों से स्वंय राज्य हित में त्याग कराकर पहल करने की मांग सचिवालय संघ प्रमुखता से करता है।

आला अधिकारियों की सुख-सुविधाओं पर उपरोक्तानुसार अंकुश लगा दिये जाने के बाद सचिवालय सेवा संवर्ग के भी राज्य के हित में अपनी सेवा को सीमित वित्तीय संसाधनों के दायरे में लाये जाने के प्रमुख सुझाव मुख्यमंत्री की सेवा में प्रस्तुत करने हेतु कार्मिक सेवा संघ के रूप में सचिवालय संघ सबसे पहले अग्रणी पहल करेगा।

यदि इसके बाद भी आला अधिकारियों की सुख सुविधाओं में कमी न कर मात्र कार्मिकों के वेतनमान डाउनग्रेड करने का निर्णय यथावत रखते हुये वित्त विभाग द्वारा कोई प्रतिकूल शासनादेश निर्गत किया जाता है तो सचिवालय संघ बिना किसी पूर्व सूचना के तत्काल प्रभाव से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को स्वतंत्र होगा। इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी सरकार और वित्त विभाग की होगी।

जाहिर है सचिवालय संघ ने जिन अहम बिंदुओं की तरफ मुख्यमंत्री का ध्यानाकर्षित कराया है उसके बाद खास आलाधिकारी जो हर हाल में वित्तीय भार का मुद्दा बनाकर इस मामले को कैबिनेट से पास करा लाए उनकी जवाबदेही बनती है कि इन सवालों का जवाब दें। या फिर यह समझा जाए कि चूंकि नीति नियंता की भूमिका में खुद को देख रहे सूबे के टॉप आईएएस तमाम नियम कायदों से ऊपर हैं? आखिर वित्तीय प्रबंधन की शुरुआत शीर्ष स्तर से क्यों न हो जो बाद में सबके लिए नजीर बनती चली जाए!

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