पहाड़ों पर नहीं चढ़ना चाहते हैं उत्तराखंड पेयजल निगम के अधिशासी अभियंता
देहरादून। हे!भगवान, उत्तराखंड में यह क्या हो रहा है। पहाड़ की राजधानी पहाड़ में हो, इस संकल्प के साथ सरकार गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर चुकी है, लेकिन अफसरों का मोह देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर और नैनीताल से नहीं छूट पा रहा है। सरकार की सोच है कि अधिकारी पहाड़ों में रहेंगे तो वहां का दर्द समझ सकेंगे और उसके अनुरुप विकास को तकनीकी के साथ जोड़कर आगे बढ़ाएंगे, लेकिन हो तो रहा है इसके ठीक उलट। पेयजल निगम में एक ऐसा मामला सामने आया है, जो सरकार के सपनों को आइना दिखा रहा है।जी हां, हम बात कर रह हैं उत्तराखंड पेयजल निगम की। बता दें कि पेयजल विभाग सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक है। निगम के पास राज्य ही नहीं केंद्र सरकार की भी कई महत्वकांक्षी योजनाओं के संचालन का जिम्मा है।
अधिकारी-कर्मचारियों को पहाड़ चढ़ाने की कवायद रंग नहीं ला रही है। जिससे दुर्गम क्षेत्रों की व्यवस्थाएं अभी पटरी पर नहीं आ सकी हैं।यह बुरा हाल उत्तराखंड पेयजल निगम का है। अधिकारी पहाड़ चढ़ने को राजी नहीं हैं।ताज़ा मामला उत्तराखंड पेयजल निगम का है।उत्तराखंड पेयजल निगम(गंगा) गोपेश्वर में किसी भी अधिशासी अभियंता की तैनाती नही हुई है।हाल ही में उत्तराखंड पेयजल निगम में 18 सहायक अभियंताओं को अधिशासी अभियंता में प्रमोशन हुआ था।इन अभियंताओं में किसी भी अभियंता की पेयजल निगम (गोपेश्वर) में तैनाती नही की गई।
विभागीय सूत्रों के हवाले से खबर है। इन 18 अधिशासी अभियंता से एक अभियंता की पेयजल निगम श्रीनगर डिविजन में तैनाती के आदेश जारी हुए थे।लेकिन इस अधिशासी अभियंता ने 25 दिन बीत जाने के बाद भी श्रीनगर के डिवीजन में जॉइनिंग नहीं की है।ये अभियंता आज कल शासन के चक्कर काट रहा है और देहरादून के ही एक डिवीजन में तैनाती के लिए सेटिंग-गेटिंग कर रहा है।विभागाध्यक्षों को भी ऐसे अफसरों के कार्य दायित्व के प्रति कड़ी निगरानी रख कर नकेल कसने की आवश्यकता है, ताकि दूसरे अफसरों के लिए यह नजीर बन सके।