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EPF पर लगने वाले टैक्स का आप पर होगा क्या असर,पढ़िए पूरी खबर

दिल्ली।अभी तक ईपीएफ से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स नहीं लगता था। दूसरे निवेश विकल्पों के मुकाबले ब्याज हमेशा ऊंचा रहता था और पैसे पर सावरेन गारंटी थी। हालांकि, लाक-इन अवधि लंबी थी, मगर ब्याज दर ऊंची थी और ये टैक्स फ्री था, तो लंबी लाक-इन अवधि के लिए यह एक विकल्प था। अब, इस साल से कहानी बदल गई है। जो लगातार अधिक ईपीएफ कटवाते हैं उन्हें ध्यान देने की जरूरत है। इस साल से टैक्स-प्री ब्याज की आमदनी केवल 2.5 लाख रुपये के सालाना जमा तक ही सीमित है। अगर इसमें नियोक्ता का योगदान नहीं है, तो यह सीमा पांच लाख रुपये होगी। इस सीमा से ज्यादा सालाना योगदान के लिए मिलने वाले ब्याज को आपकी आमदनी में जोड़ दिया जाएगा।

बैंक और दूसरे डिपाजिट की तरह इसका टीडीएस तिमाही काटा जाएगा। इसे लागू करने के लिए इस साल से, जो एक साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा का योगदान देते हैं, उन सभी सदस्यों के लिए ईपीएफओ दो अलग अकाउंट बनाएगा। इसमें से एक अकाउंट सामान्य तौर पर मौजूदा ईपीएफ अकाउंट की तरह ही आपरेट होगा। वहीं, दूसरे अकाउंट में, जहां आपके बैलेंस का टैक्स वाला हिस्सा रहेगा, उस पर टीडीएस काटा जाएगा। अब से, आपके ईपीएफ का ये हिस्सा किसी भी दूसरे डिपाजिट (कुछ समय के लिए) की तरह है।

ईपीएफ की दूसरी नकारात्मक बात है, लंबे समय का लाक-इन। जो अब बेकार हो जाता है। ये बातें अब ईपीएफ को पूरी तरह से बदल देती हैं। मान लेते हैं कि ईपीएफ में आपका योगदान तीन लाख रुपये सालाना है। यानी यह 2.5 लाख रुपये की सीमा से ज्यादा है। ये भी मान लेते हैं कि अब से ब्याज की दर आठ प्रतिशत होगी और आप 30 प्रतिशत टैक्स के दायरे में हैं। तो हर साल, आप अपनी बचत पर आठ प्रतिशत कमाएंगे और 30 प्रतिशत का इन्कम टैक्स देंगे।अगर यह तीन लाख रुपये बिना टैक्स ईपीएफ में लगे होते तो इससे बीस साल में 1.48 करोड़ रुपये इकट्ठा हो जाते। मगर, टैक्स वाले अकाउंट में ऊपर तय की गई शतरें के मुताबिक, यह रकम केवल 1.12 करोड़ रुपये ही होगी। लगातार टैक्स का मतलब है कि टैक्स के बाद असल रिटर्न सिर्फ 5.62 प्रतिशत रह जाएगा।

तो आपको क्या करना चाहिए? क्यों ना टैक्स वाले ईपीएफ अकाउंट के बजाए इस पैसे को इक्विडी फंड में लगाया जाए। आप एक कंजरवेटिव लार्ज-कैप फंड चुन सकते हैं या शायद सेंसेक्स या निफ्टी का ईटीएफ चुन सकते हैं। इसमें उतार-चढ़ाव तो रहेगा, पर बीस साल के दौरान या बराबर हो जाएगा। इसमें रिटर्न भी बेहतर होंगे। आइए इसी कैलकुलेशन को फिर से करते हैं।

मान लेते हैं कि इक्विटी के लिए बीस साल बहुत लंबा अरसा है और रिटर्न भी आठ प्रतिशत ही रहेंगे। इस पर सिर्फ टैक्स का ही अंतर ले लेते हैं। इस केस में, पहले जैसा ही इनफ्लो रखने पर 1.12 करोड़ के बजाए आपके पास 1.39 करोड़ रुपये होंगे। इक्विटी म्यूचुअल फंड में पैसा बिना टैक्स इकठ्ठा होगा और उस पर आखिरी में पैसा निकालने पर केवल दस प्रतिशत की दर टैक्स लगेगा। यहां असल रिटर्न का रेट 7.48 प्रतिशत होगा।

अगर कुछ फायदेमंद है, तो उसका ज्यादा होना बेहतर है। लेकिन यह हमेशा बेहतर नहीं होता है। हालांकि, कर्मचारी भविष्य निधि या ईपीएफ के प्रशंसक तो यही मानते हैं। लंबे समय से वेतन पाने वाले जरूरी रकम से ज्यादा ईपीएफ में निवेश करते रहे हैं। इसमें न तो नियोक्ता अपने हिस्से से अधिक पैसे देते हैं, न ही इस अधिक पैसे पर टैक्स में कोई छूट मिलती है। मगर इसे हर तरह से बुरा भी नहीं कहा जा सकता है।

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