उत्तराखंड

देहरादून में 22 मार्च से शुरू होगा प्रेम, सद्भावना और आस्था का प्रतीक ऐतिहासिक झंडा मेला, इस बार बदलेगा ध्वजदंड

देहरादून। श्री गुरु रामराय दरबार साहिब में हर वर्ष लगने वाले एतिहासिक झंडा मेले के आयोजन को लेकर इस बार मेला प्रबंधन समिति को प्रशासन की गाइडलाइन का इंतजार है। हालांकि समिति ने अपने स्तर से तैयारियां शुरू कर दी हैं। प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद मेले को उसी अनुसार स्वरूप दिया जाएगा। पंचमी के दिन 22 मार्च को झंडेजी के आरोहण के साथ मेला शुरू होगा।

प्रेम, सद्भावना और आस्था का प्रतीक झंडा मेला होली के पांचवें दिन देहरादून स्थित श्री दरबार साहिब में झंडेजी के आरोहण के साथ शुरू होता है, जिसमें बड़ी संख्या में देश-विदेश की संगत मत्था टेकने पहुंचती हैं। वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए मेला संक्षिप्त रूप से ही आयोजित हुआ। करीब एक माह तक चलने वाले इस मेले में स्थानीय के साथ ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के व्यापारी दुकानें सजाते हैं, लेकिन इस बार मेला प्रबंधन समिति को कोरोना के मद्देनजर प्रशासन की गाइडलाइन का इंतजार है। यदि मेला लगाने की अनुमति मिली तो दुकानदार दुकानें लगा सकेंगे।

श्री झंडा जी मेला प्रबंधन समिति के व्यवस्थापक व मेलाधिकारी केसी जुयाल ने बताया कि समिति की ओर से श्री दरबार साहिब आने वाली संगत के स्कूल, धर्मशाला, होटल में ठहरने से लेकर खाने और चिकित्सा व्यवस्था शुरू कर दी है। किसी को भी परेशानी न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा। हालांकि, प्रशासन की ओर से गाइडलाइन जारी होने के बाद ही मेले के स्वरूप को अंतिम रूप दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि झंडेजी की ऊंचाई, आरोहण का समय और मेला संबंधी अन्य कार्यक्रमों को लेकर मार्च में होने वाली बैठक में निर्णय लिया जाएगा।

झंडा मेले में हर तीन वर्ष में झंडेजी के ध्वजदंड को बदलने की परंपरा रही है। इससे पूर्व वर्ष 2020 में ध्वजदंड बदला गया था। श्री झंडा जी मेला प्रबंधन समिति के व्यवस्थापक व मेलाधिकारी केसी जुयाल ने बताया कि अपरिहार्य परिस्थिति में किसी भी वर्ष ध्वज दंड को बदला जा सकता है। इसलिए इस वर्ष नया ध्वज दंड लगभग 85 फीट ऊंचा रहेगा। नए ध्वजदंड को दुधली के जंगलों से लाकर एसजीआरआर पब्लिक स्कूल, मोथरावाला में रखा गया है। श्री दरबार साहिब में लाकर पूजा-अर्चना के बाद कृष्ण पंचमी यानी 22 मार्च को झंडे जी का आरोहण किया जाएगा।

मेले में झंडेजी पर गिलाफ चढ़ाने की भी अनूठी परंपरा है। चौत्र पंचमी के दिन झंडे की पूजा-अर्चना के बाद पुराने झंडेजी को उतारा जाता है और ध्वजदंड में बंधे पुराने गिलाफ, दुपट्टे आदि हटाए जाते हैं। दरबार साहिब के सेवक दही, घी और गंगाजल से ध्वजदंड को स्नान कराते हैं। इसके बाद शुरू होती है। झंडेजी को गिलाफ चढ़ाने की प्रक्रिया। झंडेजी पर पहले सादे (मारकीन के) और फिर सनील के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं। सबसे ऊपर दर्शनी गिलाफ चढ़ाया जाता है और फिर पवित्र जल छिड़ककर श्रद्धालुओं की ओर से रंगीन रुमाल, दुपट्टे आदि बांधे जाते हैं।

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