पेयजल कार्मिक चुनाव बहिष्कार पर, सरकार ने नहीं ली कोई सुध।
देहरादून।जहां एक और राज्य निर्वाचन आयोग अपनी ओर से मतदान प्रतिशत अधिक से अधिक बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं , जिसके कारण इस बार मतदान प्रतिशत उत्तराखंड में बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। परंतु सरकार के पेयजल महकमे का अजब हाल है , जहां कर्मचारियों द्वारा चुनाव बहिष्कार की सूचना होने के बाद भी अधिकारियों के द्वारा चुनाव बहिष्कार को समाप्त करने के लिए कोई पहल नहीं की गई। चुनाव से ठीक पहले पेयजल कार्मिकों के हुए विशाल आंदोलन के उपरांत उनकी मांगों पर गंभीरता से कार्यवाही न होने पर पेयजल कार्मिकों ने चुनाव बहिष्कार पर जाने का निर्णय लिया था। इस संबंध में जल संस्थान- जल निगम संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारीयों का कहना है कि कि यदि कोषागार के माध्यम से वेतन व पेंशन भुगतान संबंधी समिति की रिपोर्ट भी कम से कम शासन को प्रेषित कर दी जाती तो वह अपने चुनाव बहिष्कार के निर्णय को वापस ले सकते थे क्योंकि 5 वर्ष में एक बार आने वाला मतदान दिवस प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है परंतु पेयजल निगम व जल संस्थान की इस प्रकार की हठधर्मिता से कर्मचारी अपने मूल अधिकार को छोड़ने के लिए विवश हैं। कर्मचारियों द्वारा इस बात पर रोष व्यक्त किया गया कि पेयजल निगम व जल संस्थान के कार्मिकों के साथ शासन के अधिकारियों द्वारा सौतेला व्यवहार किया जा रहा है जहां अन्य सभी सरकारी विभागों में सातवें वेतन आयोग के अनुरूप आवास भत्ता दिया जा रहा है, वहीं पेयजल निगम में पिछले 3 सालों से फाइल वित्त विभाग के अनुभाग में धूल फांक रही है। शासन के पेयजल विभाग के अधिकारियों द्वारा केवल वित्त विभाग में फाइल भेज कर अपनी इतिश्री कर दी जाती है और वित्त विभाग के आपत्तियों को उचित प्रकार से निस्तारित नहीं किया जाता है।
देखना हैं कि पेयजल कार्मिकों की इस नाराजगी को सरकार किस प्रकार से लेती है?