उत्तराखंड

गजब: उत्तराखंड में रिटायरमेंट के बाद भी रिटायर नहीं होते अफसर.! अब जलसंस्थान का ये लेटर हो रहा वायरल

देहरादून । उत्तराखंड राज्य की लड़ाई में सपना तो था कि बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा, पर राज्य बनने के बाद लगता है कि उत्तराखंड अफसरों को सम्पूर्ण जीवनकाल तक स्थायी रोजगार देने वाला राज्य बन गया है। अफसर रिटायर हो रहा है और अगले ही दिन पुनः सरकारी सेवा में नियुक्त कर दिया जा रहा है। उत्तराखंड में अफसर कभी रिटायर नहीं होते। यह जुमला यहां की ब्यूरोक्रेसी के बीच आम है। बस इसके लिए एक सबसे बड़ी क्लीफिकेशन है सत्ता या फिर सत्ताधारियों से नजदीकी। अलग प्रदेश बनने के बाद से यहां दर्जनों अफसरों-पहुंच वाले कर्मचारियों को पुनर्नियुक्ति देकर किसी न आयोग या समिति में पद देकर भारी-भरकम वेतन के साथ सुख-सुविधा संपन्न किया गया है। हालांकि पुनर्नियुक्ति देना सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा करने से अधिकारियों-कर्मचारियों के एक तबके में खासी नाराजगी है।

ताजा मामला उत्तराखंड जल संस्थान से जुड़ा हुआ है। यहां एक पत्र वायरल हो रहा है जिसके मुताबिक जल संस्थान मुख्यालय से सेवानिवृत्ति हुए वरिष्ठ लेखाधिकारी पीके गुप्ता को दुबारा पुर्ननियुक्ति देने की तैयारी की जा रही है। सेवानिवृत्ति अधिकारी की पुर्ननियुक्ति पर आपत्ति जताते हुए उत्तराखंड जल संस्थान संयुक्त संगठन मोर्चा ने आंदोलन की चेतावनी दी है। उत्तराखंड जल संस्थान संयुक्त संगठन मोर्चा के मुख्य संयोजक विनोद कुमार शर्मा ने मुख्य महाप्रबंधक जल संस्थान को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि कुछ अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के बाद भी पुनः पुर्ननियुक्ति देकर विभाग दुआरा मोटे वेतन का भुगतान कर सेवाएं ली जा रही हैं । जबकि विभाग की नियमावली में साफ है कि अधिकारियों-कर्मचारियों से सेवानिवृत्ति उपरांत कोई कार्य नहीं लिया जा सकता है।

पुर्ननियुक्ति दी तो आंदोलन करेगा मोर्चा

उत्तराखंड जल संस्थान संयुक्त संगठन मोर्चा के मुख्य संयोजक विनोद कुमार शर्मा ने कहा पूर्व में भी कई बार संगठनों के द्वारा मुख्यालय स्तर से वार्ता कर इस बाबत अवगत कराया गया है कि सेवानिवृत्ति उपरांत किसी भी अधिकारी कर्मचारी को पुनः संस्थान सेवा में ना लिया जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। उन्होंने कहा विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि एक बार एक अन्य अफसर को पुनर्नियुक्ति देने की तैयारी पूरी हो गई है। दिनांक 3 सितंबर 2022 को मुख्यालय से सेवानिवृत्ति हुए पीके गुप्ता वरिष्ठ लेखाधिकारी को पुनः संस्थान में सेवाएं देने हेतु प्रस्ताव तैयार किया गया है जो कि उचित नहीं है। उन्होंने कहा यदि संबंधित को पुनः विभाग में समायोजित किया जाता है तो संयुक्त मोर्चा को विवश होकर आंदोलन कार्रवाई किए जाने हेतु बाध्य होना पड़ेगा जिसका समस्त उत्तरदायित्व शासन प्रशासन का होगा। कर्मचारी नेताओं को इस बात पर भी आपत्ति है कि सेवानिवृत्त नौकरशाहों व अफसरों को सरकार दोबारा नौकरी पर रख रही है। जबकि अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष सेवा के रूप देने वाले कर्मचारी पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की तलवार लटकाई जा रही है।

रिटायरमेंट के बाद भी रोजगार!

उत्तराखंड बना तो यहाँ न केवल प्रमोशन पा रहे हैं बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी खजाने से जीवन के सभी ऐश-ओ-आराम पा रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद अफसरों को सेवा विस्तार किसी एक सरकार का काम नहीं है बल्कि उत्तराखंड में सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की,अफसरों के पोस्ट रिटायरमेंट जीवन के प्रति दोनों बहुत संजीदा हैं। एक-दूसरे पर बेहद निम्न स्तर पर उतर कर आरोप-प्रत्यारोप करने वाले कांग्रेस-भाजपा के नेताओं में अफसरों की “सेवा” करने के मामले में जबरदस्त एका है। हैरत की बात ये है कि अफसरों के रिटायरमेंट के बाद भी रोजगार का इंतजाम करने वाले इस राज्य में हज़ारों बेरोजगार नौजवान हैं,जो वांछित योग्यता होने के बावजूद रोजगार से वंचित हैं। युवाओं का बड़ा हिस्सा अस्थायी प्रकृति की नौकरियों में असुरक्षा बोध से घिरा हुआ अपनी युवा अवस्था को गँवा रहा है। संविदा पर नियुक्ति वालों को देने के लिए सरकार के पास तनख्वाह के पैसे तक नहीं हैं। स्थायी रोजगार इसलिए नहीं देना है क्यूंकि सरकारी तर्क के अनुसार सरकार के खजाने पर इससे बोझ पड़ता है। यह कैसा अद्भुत सरकारी खजाना है, जिसपर बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने से तो बोझ पड़ता है, लेकिन रिटायरमेंट की उम्र पार किये हुए अफसरों को ढोने में जिसके माथे पर शिकन तक नहीं आती ?

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