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फ्रांस में क्यों नहीं मची है गैस के लिए ब्रिटेन जैसी अफरातफरी?

इंग्लैंड।gasCrisis: इसका कारण दोनों देशों में मार्केट रेगुलेशन की नीतियों में फर्क है। ब्रिटेन की नीति ऊर्जा कंपनियों को संरक्षण देने वाली है। जबकि फ्रांस में सरकार ने कीमत तय करने में अपनी भूमिका बनाए रखी है..

फ्रांस में परिवारों के औसत ऊर्जा बिल में पांच फीसदी से भी कम बढ़ोतरी हुई है। जबकि ब्रिटेन में सबसे गरीब घरों के बिल में भी सर्दियों में 15 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी होगी। ब्रिटेन और फ्रांस दोनों समान बिजली ग्रिड से जुड़े हुए हैं। इसके बावजूद ऊर्जा बिल में अंतर यूरोप में चर्चा का विषय बना रहा है। अब इस बारे में एक अध्ययन रिपोर्ट जारी हुई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक इस अंतर का कारण दोनों देशों में मार्केट रेगुलेशन की नीतियों में फर्क है। ब्रिटेन की नीति ऊर्जा कंपनियों को संरक्षण देने वाली है। इसके तहत अगर कंपनियों के ऊर्जा प्राप्त करने की दर बढ़ती है, तो उन्हें उन्हें छूट रहती है कि वे अपने मुनाफे का संरक्षण करते हुए दाम बढ़ाएं। असामान्य स्थितियों में सरकार गरीब परिवारों को नकदी सहायता देकर महंगाई झेलने में मदद देती है। जबकि फ्रांस में सरकार ने कीमत तय करने में अपनी भूमिका बनाए रखी है।

विशेषज्ञों के मुताबिक जहां तक बिजली उत्पादन और वितरण का संबंध है, ब्रिटेन का बाजार निश्चित रूप से अधिक कुशल है। इसकी वजह इस पहलू को माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार बाजार में सीधे दखल नहीं देती है। ब्रिटेन में बिजली विनियामक संस्था ऑफजेम ऊर्जा की अधिकतम कीमत तय कर देती है। इसके बाद कंपनियां परिवारों से बिजली और गैस के उनके उपभोग की मात्रा के अनुसार उनसे कीमत वसूल करती हैँ।

रिसर्च रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि फ्रांस में बाजार अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है, लेकिन यहां ज्यादातर बिजली उत्पादक कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। फ्रांस में ऊर्जा उत्पादक कंपनियां बिजली की बिक्री वितरण कंपनियों को करती हैँ। ये कंपनियां उपभोक्ताओं को सीधे बिक्री करती हैं। लेकिन अंतर यह है कि फ्रांस सरकार सरकार पब्लिक सेक्टर की ऊर्जा उत्पादक कंपनियों को रियायती दर पर ऊर्जा बेचने का निर्देश दे सकती है। फिलहाल, सरकारी निर्देश के तहत ये कंपनियां लागत मूल्य से एक चौथाई कम पर ऊर्जा की सप्लाई वितरण कंपनियों को कर रही हैं। इस वजह से फ्रांस के लोगों राहत मिली हुई है।

ब्रिटेन के लोगों को ऊर्जा की अत्यधिक महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। अगली सर्दियों में वहां प्राकृतिक गैस और बिजली का औसत बिल 4000 पाउंड से ऊपर जा सकता है। 12 महीने पहले ब्रिटेन के लोग गैस और बिजली के लिए जो कीमत चुका रहे थे, ये रकम उसके तीन गुना से भी ज्यादा होगी। लेकिन फ्रांस में ऐसी हालत नहीं है। वहां ऊर्जा की कीमत में मामूली बढ़ोतरी ही हुई है। जबकि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद इन दोनों देशों ने रूस पर सख्त प्रतिबंध लगाए। उसकी वजह से दोनों देशों में रूसी गैस की सप्लाई घटी है।

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